Raagdarbari Ka Samajshashtriya Adhayayan

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Raagdarbari Ka Samajshashtriya Adhayayan

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350.00 315.00

In stock

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Author: Jaiprakash Kardam

Availability: 3 in stock

Pages: 143

Year: 2018

Binding: Hardbound

ISBN: 9789386604323

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

रागदरबारी का समाजशास्त्रीय अध्ययन

प्राककथन

जयप्रकाश कर्दम चोट करने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की क्षमता से सम्पन्न व्यक्ति हैं जो अपनी चेतना से छप्पर को विकसित जीवन देकर उसे एक स्वच्छ भवन का रूप देने में आनन्द का अनुभव करते हैं। श्रीलाल शुक्ल कृत ‘रागदरबारी’ ऐसे भारतीय ज़ीवन को प्रस्तुत करता है जो उपन्यासकार की पैनी दृष्टि में “रागदरबारी” है। ‘रागदरबारी’ के अभिधार्थ पर ध्यान दें, वह अतीत का हो चुका है, किन्तु भारतीय ग्रामों में वह राग अपनी नयी सजधज में पूरे वातावरण में तरंगायित है तथा सम्पूर्ण जीवन का स्पन्दन बना हुआ है। डॉ. कर्दम की चेतना में दलित जीवन ऐसा प्रेरक स्रोत है जिससे उनका जीवन उन सरणियों पर अग्रसर होता रहता है जो मानव के विकास तथा उसकी प्रगति को मंजिल बनाए हुए हैं। श्रीलाल शुक्ल ने सहानुभूतिपूर्वक भारतीय सामाजिक जीवन को उसकी समग्रता में देखा है, अतः डॉ. कर्दम का ध्यान ‘रागदरबारी’ के समाजशास्त्रीय पक्ष पर जाना उसके व्यक्तित्व के सर्वथा अनुकूल है।

समाजशास्त्र सामाजिक संस्थाओं के जन्म, विकास-ह्नास और विघटन का अध्ययन करके समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों की स्थापना-करता है। ये सिद्धान्त समाज-अध्येता के लिए प्रकाश का कार्य करते हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में लेखक ने अध्ययन का आरम्भ ‘परिवार’ नामक इकाई से किया है। प्रायः परिवार को शाश्वत इकाई के रूप में मान लिया जाता है और यह आशा की जाती है कि एक धर्म-संस्कृति और एक आर्थिक परिस्थिति में एक ही प्रकार के परिवार बनेंगे, किन्तु यह धारणा सतही है। गहराई से देखने पर यह ज्ञात होता है कि मनुष्य समाज व्यष्टि-समष्टि और आंगिक-अनांगिक द्वारा सतत्‌ निर्मित होती हुई परिस्थितियों का प्रतीत्यसममुत्पादी जीवन उत्पाद है जिसके लिए कोई भी अपरिवर्तनशील साँचा निर्दिष्ट करना संभव नहीं है।

डॉ. कर्दम ने देखा है कि ‘रागदरबारी’ में अभिव्यक्त परिवार कई प्रकार के हैं। परिवार की लघुत्तम इकाई पति-पत्नी का जोड़ा है। यह जोड़ा, सामाजिक इकाई के अनुसार, उसकी धर्म-संस्कृति की माँग की प्रक्रियाओं को पूर्ण करके बनता है। इन प्रक्रियाओं को बिना पूरा किये यदि यह जोड़ा अस्तित्व में आ गया तो विशेष सामाजिक इकाई उसे अपना अंग तो नहीं बनायेगी; किन्तु यह जोड़ा उस सामाजिक इकाई द्वारा निर्धारित अपमानजनक अभिधान को स्वीकार करके अपने को उसका अंग बना ही लेता है। इस जोड़ी में नारी पतली न कही जाकर ‘रखैल’ कही जाती है और वह सामाजिक सम्मान नहीं पाती जो एक पत्नी पाती है। ‘रखैल’ तिरस्कार और हँसी-मजाक का पात्र बनाई जाती है। अब ‘न्यायालयी विवाह’ और ‘परीक्षण-नली-प्रजनन’ भी होने लगा है। इस स्थिति में भी परिवार बनता है; किन्तु यह तिरस्कार और अल्प सम्मान का पात्र बनाया जाता है।

उपर्युक्त जोड़े परिवार की जिस इकाई को जन्म देते हैं उसे समाजशास्त्र ‘एकल परिवार’ नाम देता है। श्रीलाल शुक्ल ने अपने उपन्यास में इन्हें स्थान दिया है। समाज में कभी-कभी नारी अथवा पुरुष अकेला रह जाता है। उपन्यास में ‘लंगड़’ और ‘सनीचर’ ऐसे ही पात्र है। ये दोनों, परिवार की क्षतिपूर्ति, समाज के अन्य परिवारों से संपर्क बनाकर या अन्य धर्म, सम्प्रदाय, वर्ण, जाति के लोगों से संबंध बनाकर करते हैं। ऐसे व्यक्ति कुछ उदार और नैतिक बने दिखाई पड़ते हैं। एकल परिवार पैतृक सम्पत्ति के विभाजित होने पर विघटित हो जाते हैं। आर्थिक संबंध ही एकल परिवार का आधार रह गया है। आर्थिक संबंध के टूटने पर संयुक्त परिवार अब नहीं बनते। उपन्यास एकल परिवारों की प्रधानता को ही प्रस्तुत करता है।

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Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2018

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