Sagar Ke Moti

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Sagar Ke Moti

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Author: Swami Avdheshanand Giri

Availability: 10 in stock

Pages: 248

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788131005194

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

सागर के मोती

सागर का एक नाम रत्नाकर भी है। लेकिन इन रत्नों की प्राप्ति के लिए समुद्र का मंथन करना आवश्यक है। इस मंथन के लिए धैर्यपूर्वक परस्पर सहयोग एवं भावनायुक्त कठोर श्रम की आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं, इसके लिए अमृत के मधुर रस चखने के साथ ही विष की तीक्ष्ण मारक शक्ति को सहन करने की क्षमता भी अनिवार्य होती है। जब ऐसा हो जाता है, तब महासागर जीवन को नहीं हरता, तब वह बन जाता है-अमूल्य संपदा प्रदान करने वाला स्वर्गिक कल्पवृक्ष। इसके नीचे बैठकर समस्त कामनाएं पूर्ण होती हैं।

संसार को भी सागर की उपमा दी गई है। शास्त्रों में बार-बार इस भवसागर को पार करने की बात की जाती है। संसार में शोक है। विषाद है, दुख है। आपने ’गीता’ पढ़ते समय पाया होगा कि विषाद भी अर्जुन के लिए ’योग’ बन गया। इसी पर समस्त योगों का चिंतन खड़ा है। अमरता तक पहुंचने के लिए नश्वरता का सहारा लेना पड़ता है। उपनिषद कहते हैं-संसार से मृत्यु का अतिक्रमण होता है और सत्य से अमरता की प्राप्ति।

आचार्य महामण्डलेश्वर श्री स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज के प्रवचनों में जहां सागर जैसी गंभीरता होती है, वहीं सत्य का अलौकिक घोष भी होता है। संगीत की स्वर लहरियों पर तैरती हुई अलंकृत भाषा जब श्रोताओं के मन-मस्तिष्क का स्पर्श करती है, तो वह तरंगित और संतृप्त कर देती है-हृदय और आत्मा को अपनी समग्रता में, संपूर्णता में। सत्संग की पावन वेला में कर्ण सीपियों में पड़ने वाली शब्द-बूंद हृदय तक पहुंचते-पहुंचते बदल जाती है, ऐसे सच्चे मोती के रूप में जिसका कोई मूल्य नहीं है, जो अमूल्य है।

सागर के ये अनमोल मोती आपको आध्यात्मिक समृद्धि से संपन्न और श्रीमान बना देंगे, ऐसा हमारा विश्वास है।

 

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Paperback

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Language

Hindi

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Publishing Year

2019

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