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Description
सावधान नीचे आग है
चन्दनपुर के नीचे आग धधक रही है। लोगों में आग है, उनकी नसों के बिलकुल करीब…आग ही आग…लाल-सुर्ख. ..तपती हुई…। यह आग हो सकता है कि कभी किसी बड़े परिवर्तन का सूत्रपात करे लेकिन अभी तो वह सिर्फ लोगों को जला रही है। तिल-तिल करके जल रहे हैं वे, अपनी छोटी-छोटी अपूर्ण इच्छाओं के साथ। जिन्दगी बीभत्सता की हद तक सड़ी हुई…नर्क…। दलालों, सूदखोरों और गुंडों के बीच पिसते, कोयले की गर्द फाँकते, चन्दनपुर के खदान मजूदूर यह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके बजाय उनकी औरतों को ही पहले काम क्यों दिया जाता है। ‘सच तो यह है कि जिनके हाथ में कानून और पावर है, सब चोर हैं। मेहनत, ईमानदारी की कोई कदर नहीं। जो लूट रहा है, लूट रहा है, जो बिला रहा है, बिला रहा है… यह समूचा इलाका ही बैठ जाएगा एक दिन जल-जल कर’ – मेवा के इस कथन में आक्रोश के साथ लाचारी है, खीज है।
संजीव की कहानियों में शुगरकोटेड यथार्थ नहीं होता और न ही मनोरंजन। समाज के जिस वर्ग की जिंदगी के बारे में वे लिखते हैं, उसकी पीड़ाओं की तह तक उतर जाते हैं। अब तक दर्जनों चर्चित कहानियों के लेखक संजीव के इस उपन्यास में विषय की गहराई, उसकी समझ और पकड़, शैली और शिल्प के अतिरिक्त जो प्रतिबद्धता है, हर पाठक को उसका कायल होना पड़ेगा।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2018 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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