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Soordas

Soordas

395.00 315.00

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Author: Nandkishore Naval

Availability: 5 in stock

Pages: 103

Year: 2022

Binding: Hardbound

ISBN: 9788126723959

Language: Hindi

Publisher: Rajkamal Prakashan

Description

सूरदास

तुलसीदास पर पुस्तक लिखने के बाद हिंदी के जाने-पहचाने ही नहीं, माने हुए आलोचक डॉ. नवल ने अंतःप्रेरणा से सूरदास के पदों पर यह आस्वादनपरक पुस्तक लिखी है, जिसमें आवश्यक स्थानों पर अत्यंत संक्षिप्त आलोचनात्मक टिप्पणियाँ भी हैं। उन्होंने कृष्ण और राधा की संकल्पना तथा वैष्णव भक्ति के उद्भव और विकास पर भी काफी शोध किया, लेकिन पुस्तक की पठनीयता बरकरार रखने के लिए उससे प्राप्त तथ्यों का संकेत भूमिका में ही करके आगे बढ़ गए हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित ‘भ्रमरगीत सार’ की भूमिका उनकी आलोचना का उत्तमांश है, जिसमें उनकी शास्त्रज्ञता और रसज्ञता दोनों का अद्भुत सम्मिश्रण हुआ है। लेकिन यह भी सही है कि उनकी लोक-मंगल और कर्म-सौंदर्य की कसौटी, जो उन्होंने रामचरितमानस से प्राप्त की थी, सूर के लिए अपर्याप्त है।

कारण यह कि उक्त दोनों ही शब्द बहुत व्यापक हैं, जिनका अभिलषित अर्थ ही आचार्य ने लिया है। तुलसी मूलतः प्रबंधात्मक कवि थे और क्लासिकी, जबकि सूर आद्यंत गीतात्मक और स्वच्छंद, इसलिए पहले महाकवि के निकष पर दूसरे महाकवि को चढ़ाकर दूसरे के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। डॉ. नवल प्रगीतात्मकता के संबंध में एडोर्नो की इस उक्ति के कायल हैं कि ‘प्रगीत-काव्य इतिहास की ‘दार्शनिक धूपघड़ी’ है।’ इस कारण उसकी छाया को उस तरह नहीं पकड़ा जा सकता, जिस तरह इतिवृत्तात्मक शैली में लिखनेवाले किसी कवि की कविता में हम यथार्थ को ठोस रूप में पकड़ लेते हैं। दूसरी बात यह कि उन्होंने सूर की कविता से सीधा साक्षात्कार किया है।

Additional information

Weight 0.5 kg
Dimensions 21 × 14 × 4 cm
Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2022

Pulisher

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