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Description
अरे यायावर रहेगा याद
कोई भी यात्रा मात्र व्यक्ति की यात्रा नहीं होती। अगर वह जिस रस्ते पर चल रहा है वह रास्ता भी यात्रा में शामिल है तो-और रस्ते शामिल हैं तो क्या कुछ नहीं शामिल। ‘अरे यायावर रहेगा याद’ अज्ञेय का एक ऐसा ही यात्रा-संस्मारत है जिसमें रस्ते शामिल हैं। इसलिए यह पुस्तक अपने काल के भीतर और बाहर एक प्रक्रिया, एक विचार और एक विमर्श भी है।
बगैर उद्घोष की यात्रा प्रकृति और भूगोल से गुजरती हुई संस्कृति, समाज और सभ्यता से भी गुजर रही होती है। अज्ञेय की यह पुस्तक इस मायने में एक कालातीत मिसाल लगती है कि इसके बहाने द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर पूरे हिंदुस्तान की आजादी तक का वह भूगोल और कालखंड सामने आते हैं जहाँ जितने अधिक सपने थे उतने ही यातनाओं के मंजर भी। यह पुस्तक एक व्यक्ति के विपरीत नहीं, बल्कि समक्ष एक नागरिक और उसके एक मनुष्य होने की भी यात्रा-पुस्तक है।
अज्ञेय अपने यात्रा में लाहौर, कश्मीर, पंजाब, औरंगाबाद, बंगाल, असम आदि प्रदेशों की प्रकृति और भूमि से गुजरते हुए अपनी कथात्मक शैली और भाषा की ताजगी से सिर्फ सौंदर्य को ही नहीं रचते बल्कि सदियों हम जिनके गुलाम रहे उनके इतिहास के पन्ने भी पलटते हैं। वैज्ञानिकता और आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में उनके विकास, विस्तार और विध्वंस के गणित को हल करने का द्वन्द और अकथ उद्यम इस पुस्तक को वायरल कृति बनाते हैं।
पुस्तक में एलुरा, एलिफांटा, कन्याकुमारी, हिमालय आदि की यात्रा करते मिथकों, प्रतीकों और मूर्तियों की रचना को अपने यथार्थ और अयथार्थ के केंद्र में देखा-परखा गया हैं जहाँ लेखक को पुराणों और इतिहास की वह सच्चाई नजर आती है जो युगों तक गाढे रंगों के पीछे रही। अनदेखे और अछूते को यात्रा की अभिव्यक्ति और उसकी कला में मूर्त करना कोई सीखे तो अज्ञेय से सीखे।
अज्ञेय की यह दृष्टि ही थी कि यात्रा, भ्रमण के बजाय एक ऐसी घटना बन सकी जिसकी क्रिया-प्रतिक्रिया में अपना कुछ अगर खो जाता है तो बहुत कुछ मिल भी जाता है। अपना बहुत कुछ खोने, पाने और सृजन करने का नाम है-‘अरे यायावर रहेगा याद ?’
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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