Ashtawakra Gita

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Ashtawakra Gita

Ashtawakra Gita

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320.00 319.00

Author: Nandlal Dashora

Availability: 5 in stock

Pages: 391

Year: 2013

Binding: Paperback

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Randhir Prakashan

Description

अष्टावक्र गीता : राजा जनक और अष्टावक्र सम्वाद

मूल संस्कृत श्लोक, हिन्दी अनुवाद और व्याख्या सहित

अष्टावक्र एक ऐसे बुद्ध पुरुष थे जिनका नाम आध्यात्मिक जगत् में बड़े सम्मान से लिया जाता है। अल्प आयु में ही इन्हें आत्मज्ञान हो गया था। इनके जीवन के बारे में एक कथा है कि ये शरीर के आठ अंगों से टेढ़े-मेढ़े कुरूप तो थे ही, अंगों के टेढ़े-मेढ़े होने का कारण था कि जब वह गर्भ में थे तो उस समय इनके पिता एक दिन वेदपाठ कर रहे थे तो इन्होंने गर्भ से ही अपने पिता को टोक दिया था कि रुको, यह सब बकवास है शास्त्रों में ज्ञान कहाँ ? ज्ञान तो स्वयं के भीतर है। सत्य शास्त्रों में नही, स्वयं में है। शास्त्र तो शब्दों का संग्रहमात्र है। ये सुनते ही पिता का अहंकार जाग उठा। वे आत्मज्ञानी तो थे नही, पंडित ही रहे होंगे। पंडितों में ही अंहकार सर्वाधिक होता है क्योंकि शास्त्रों के ज्ञाता होने के कारण उनमें जानकारी का अंहकार होता है। इसी अंहकार पर चोट पड़ते ही वह तिलमिला गये होंगे कि उन्हीं का पुत्र उन्हें उपदेश दे रहा है जो अभी पैदा भी नहीं हुआ है। उसी समय उन्होंने उसे शाप दे दिया कि जब तू पैदा होगा तो आठ अगों से टेढ़ा होगा। ऐसा ही हुआ भी। इसलिये उनका नाम पड़ा अष्टावक्र।

यह गर्भ से वक्तव्य देने की बात बुद्धि की पकड़ में नहीं आयेगी, तर्क से भी समझ में नही आयेगी किन्तु इसे आध्यात्मिक दृष्टि से समझा जा सकता है। जैसे बीज में ही पूरा वृक्ष विद्यमान है, तना, शाखाऐं, पत्ते, फूल, फल, सभी; किन्तु दिखाई नहीं देता। बीज को तोड़कर देखने से भी कहीं वृक्ष का पता नहीं चलता। वैज्ञानिक भी उसे नहीं दिखा सकते। जिसने बीज ना देखा हो और वृक्ष ही देखा हो वह कभी यह नहीं कह सकता इस विशाल वृक्ष का कारण एक छोटा सा बीज हो सकता है। फिर यदि वृक्ष की उमर हजारों वर्ष की हो व मनुष्य की पचास वर्ष तो अनेक पीढियों तक वही वृक्ष दिखाई देने पर वे उसे अनादि घोषित कर देंगे कि यह किसी से पैदा नही हुआ। संसार में ऐसी अनेक भ्रान्तियाँ हैं। इसी प्रकार मनुष्य के पूरे व्यक्तित्व के गर्भस्थ शिशु अपने में छिपाये रहता है, अप्रकट अवस्था में। जो कुछ अन्तनिर्हित है; उसी का विकास होता है। जो भीतर बीज रूप में नहीं है उसका विकास नहीं हो सकता। यह कथा इस तथ्य को प्रकट करती है कि अष्टावक्र का ज्ञान पुस्तकों, पंडितों और समाज से अर्जित नहीं था बल्कि पूरा का पूरा स्वयं लेकर पैदा हुये थे। इसी बारह वर्ष के बालक अष्टावक्र से जब राजा जनक ने अपनी जिज्ञासाओं का समाधान कराया तो यही शंका का समाधान ये अष्टावक्र गीता है।

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Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2013

Pulisher

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