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Description
बचपन से बलात्कार
महिला कानूनों के जानकर और समाज तथा अदालत दोनों जगह स्त्री-सम्मान की सुरक्षा पर पैनी और सतर्क निगाह रखनेवाले लेखक व न्यायविद अरविन्द जैन यह पुस्तक बलात्कार के सामाजिक, वैधानिक और नैतिक पहलुओ को गहरी और मुखर न्याय-संवेदना के साथ देखती है। इस किताब की मुख्य चिंता यह है कि समाज के सांस्कृतिक चौखटे में जड़ी स्त्री-देह घरों और घरों से बाहर जितनी वध्य है, दुर्भाग्य से बलात्कार की शिकार हो जाने के बाद कानुक की हिफाजत में भी उससे कुछ ज्यादा सुरक्षित नहीं है। न सिर्फ यह कि समाज के पुरुष-वर्चस्व की छाया कानूनी प्रावधानों में भी न्यस्त है, बल्कि उनको कार्यान्वित करनेवाले न्यायालयों, जजों, वकीलों आदि की मनो-सांस्कृतिक संरचना में भी जस की तस काम करती दिखाई देती है।
पुस्तक में पंद्रह आलेख है। परिशिष्ट में कुछ जरूरी जानकारियां है। विशेषता यह है कि अरविन्द जैन ने पूरी सामग्री को व्यापक स्त्री विमर्श से जोड़ा है। न्याय और अस्मिता रक्षा के लिए प्रतिबद्ध उनकी विचारधारा भाषा को नया तेवर देती है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Paperback |
ISBN | |
Pages | |
Publishing Year | 2015 |
Pulisher | |
Language | Hindi |
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