Bhartiya Sahitya Evam Samaj Mein Tritiya Lingi Vimarsh

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Bhartiya Sahitya Evam Samaj Mein Tritiya Lingi Vimarsh

Bhartiya Sahitya Evam Samaj Mein Tritiya Lingi Vimarsh

395.00 335.00

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Author: Vijendra Pratap Singh

Availability: 5 in stock

Pages: 208

Year: 2016

Binding: Hardbound

ISBN: 9789385476198

Language: Hindi

Publisher: Aman Prakashan

Description

भारतीय साहित्य एवं समाज में तृतीय लिंगी विमर्श

विश्व में तृतीय प्रकृति के मनुष्यों का अस्तित्व प्राचीन काल से रहा है। किस काल में कितनी संख्या रही या किस-किस सामाजिक व्यवहारों में उनका कितना योगदान रहा, यह कहना कठिन है किंतु वेद, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि काल से तृतीय प्रकृति के लोगों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वर्तमान समय में पूर्व की तुलना में अन्य लोगों की समस्याओं में वृद्धि के साथ-साथ इनके जीवन में भी समस्याओं की संख्या बढ़ी है, क्योंकि प्राचीन काल से ये समुदाय तीज-त्यौहार एवं अन्य सुवसरों पर नेग आदि माँगकर ही जीवन यापन करता था। मँहगाई की मार से समाज का हर वर्ग प्रभावित है ऐसे में हिजडों, किन्नरों आदि इसकी लपेट से दूर नहीं हैं, बल्कि यों कहा जाए कि इनकी समस्याएँ तो अन्य लोगों से अधिक व्यापक हैं तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।

वर्तमान समाज अस्मिता की लड़ाई का समय है। समाज का छोटा से छोटा कहा जाने वाला व्यक्ति भी अपनी अस्तित्व की लड़ाई में अनवरत लगा हुआ है। ऐसे में हिंजड़ा, तृतीय लिंगी समाज भी आज अपने अस्तित्व एवं अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगा है और उसी का परिणाम है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इनके पक्ष में निर्णय दिया।

प्रस्तुत पुस्तक निश्चित रूप से सदियों से उपेक्षित, वंचित और हाशिया कृत तृतीय लिंगी समाज के लिए भारतीय समाज एवं साहित्य में विमर्श का नया अध्याय जोड़ने में सक्षम होगी।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2016

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