Dastan-E-Himalaya – 2

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Dastan-E-Himalaya – 2

Dastan-E-Himalaya – 2

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Author: Shekhar Pathak

Availability: 5 in stock

Pages: 364

Year: 2021

Binding: Hardbound

ISBN: 9788194873655

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

दास्तान-ए-हिमालय – 2

हिमालय भौगोलिक, भूगर्भिक, जैविक, सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता की अनोखी धरती है। इसने एक ऐसी पारिस्थितिकी को विकसित किया है जिस पर दक्षिण एशिया की प्रकृति और समाजों का अस्तित्व टिका है। हिमालय पूर्वोत्तर की अत्यन्त हरी-भरी सदाबहार पहाड़ियों को सूखे और ठण्डे रेगिस्तानी लद्दाख-कराकोरम से जोड़ता है तो सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र के उर्वर मैदान को तिब्बत के पठार से भी। यह मानसून को बरसने तथा मध्य एशिया की ठण्डी हवाओं को रुकने को मजबूर करता है, पर हर ओर से इसने सामाजिक-सांस्कृतिक तथा आर्थिक प्रवाह सदियों से बनाये रखा। इसीलिए तमाम समुदायों ने इसमें शरण ली और यहाँ अपनी विरासत विकसित की। हम भारतीय उपमहाद्वीप के लोग, जो हिमालय में या इसके बहुत पास रहते हैं, इसको बहुत ज़्यादा नहीं जानते हैं।

कृष्णनाथ कहते थे कि ‘हिमालय भी हिमालय को नहीं जानता है। इसका एक छोर दूसरे को नहीं पहचानता है। हम सिर्फ़ अपने हिस्से के हिमालय को जानते हैं। इसे जानने के लिए एक जीवन छोटा पड़ जाता है। पर इसी एक जीवन में हिमालय को जानने की कोशिश करनी होती है। हिमालय की प्रकृति, इतिहास, समाज-संस्कृति, तीर्थाटन-अन्वेषण, पर्यावरण-आपदा, कुछ व्यक्तित्वों और सामाजिक-राजनीतिक आन्दोलनों पर केन्द्रित ये लेख हिमालय को और अधिक जानने में आपको मदद देंगे। बहुत से चित्र, रेखांकन, नक़्शे तथा दुर्लभ सन्दर्भ सामग्री आपके मानस में हिमालय के तमाम आयामों की स्वतन्त्र पड़ताल करने की बेचैनी भी पैदा कर सकती है। व्यापक यात्राओं, दस्तावेज़ों और लोक ऐतिहासिक सामग्री से विकसित हुई यह किताब हिमालय को अधिक समग्रता में जानने की शुरुआत भर है।

दास्तान-ए-हिमालय का दूसरा खण्ड उत्तराखण्ड पर केन्द्रित है। इसका पहला लेख उत्तराखण्ड के इतिहास का विहंगावलोकन करता है। दूसरे में बैरीमैन की किताब ‘हिन्दूज ऑफ़ द हिमालय’ की पड़ताल करने की कोशिश है। तीसरा लेख उत्तराखण्ड में सामाजिक आन्दोलनों की प्रारम्भिक रूपरेखा प्रस्तुत करता है तो चौथा कुली बेगार आन्दोलन का अध्ययन है। पाँचवें अध्याय में टिहरी रियासत के ढंढकों से शुरू सामाजिक प्रतिरोधों के प्रजामण्डल तक पहुँचने की कहानी प्रस्तुत की है। अध्याय छह कफल्टा के शर्मनाक हत्याकाण्ड के बहाने अभी भी बची जातीय कट्टरता और सामन्ती सोच की रिपोर्टिंग है। अगला लेख 1984 के ‘नशा नहीं रोज़गार दो आन्दोलन’ का वर्णन-विश्लेषण है। आठवाँ अध्याय उत्तराखण्ड में पर्यावरण और खेती के रिश्तों पर दिया गया व्याख्यान है। अन्तिम अध्याय उत्तराखण्ड में प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं की दो सदियों की कथा कहता है।

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Binding

Hardbound

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Language

Hindi

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Publishing Year

2021

Pulisher

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