Do Mitra

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110.00 82.00

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Author: Vishnu Prabhakar

Availability: 5 in stock

Pages: 64

Year: 2017

Binding: Paperback

ISBN: 9788170283508

Language: Hindi

Publisher: Rajpal and Sons

Description

दो मित्र

पूर्वी पंजाब के एक छोटे से कस्बे में दो मित्र रहते थे, मंहदीहसन और भागीरथलाल। मंहदीहसन एक छोटे से जमींदार थे और भागीरथलाल एक स्कूल-मास्टर। मंहदीहसन के बाप जिंदा थे और हाथ रोककर खर्च करने में विश्वास करते थे। इसके विपरीत मंहदीहसन का हाथ खुला हुआ था। उन्हें जब कभी पैसे की तंगी होती तो वे मित्र का सहारा लेते। होते-होते उन पर सैकड़ों रुपयों का क़र्ज हो गया। देते भी रहते थे पर हिसाब कभी चुकता नहीं होता था।

और सच पूछो तो हिसाब जैसी कोई चीज़ थी भी नहीं। मंहदीहसन को जब कभी रुपयों की ज़रूरत होती तो माँग लाते, न रुक्का था न तमस्सुक। वचन सब कुछ था। मित्रता भेद नहीं जानती, काग़ज पत्र भेद डालते हैं। फिर मंहदी और भागीरथ उस भेद को कैसे पास आने देते। दोनों दो शरीर एक प्राण थे। दोनों को शतरंज का शौक था। बाजी लगती तो लग ही जाती। घंटों दोनों सिर पर हाथ रखे सोचा करते, दिन डूब जाता मगर भागीरथ के वजीर को रास्ता नहीं मिलता। मंहदी कभी मुस्कराता, कभी चमककर कहता—अमां, चल भी दो, कहां जाएगा भागकर।

—हूँ—भागीरथ जवाब देता—चल कैसे दूँ। तेरा मोहरा बैठा है न ! नाग बनकर डस लेगा, पर बच्चू ! याद रखना वह मात दूँगा कि खेल भूल जाएगा।

मंहदी हँस पड़ता—भूल जाऊँगा तो तुम्हें ही सिखाना होगा।

भागीरथ भी हँस पड़ता और मात पीछे पड़ जाती।

सदा की भाँति एक दिन दोनों दोस्त बैठे खेल रहे थे। शरतंज का खेल शाही होता है। खेलने वाले भी उसके प्रभाव में आ जाते हैं। मंहदी ने जब एक बार बहुत देर तक चाल नहीं चली तो भागीरथ ने कहा—अरे भई, चलो न चाल। क्या वजीर को पकड़े बैठे हो !

मंहदी ने सोचते हुए जवाब दिया—चलता हूँ। ऐसी भी क्या जल्दी है ?

भागीरथ-जल्दी क्या करेगी, एक घंटा हो चुका है।

मंहदी—आप एक घंटे की बात करते हैं, जनाब, यहाँ एक जिन्दगी गुजर जाती है पर चाल नहीं चली जाती।

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Binding

Paperback

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Pages

Publishing Year

2017

Pulisher

Language

Hindi

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