Itihas Mein Bhartiya Paramparaye

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Itihas Mein Bhartiya Paramparaye

Itihas Mein Bhartiya Paramparaye

200.00 180.00

In stock

200.00 180.00

Author: Gurudutt

Availability: 5 in stock

Pages: 256

Year: 1998

Binding: Hardbound

ISBN: 0

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

इतिहास में भारतीय परम्पराएँ

अध्याय एक

वर्तमान युग के इतिहासज्ञों की धाँधली

आज के तथाकथित इतिहासज्ञों ने भारत का इतिहास लिखने में इतनी धांधली मचा रखी है कि सत्य-असत्य में निर्णय करना भी कठिन हो रहा है। यह धाँधली योरुप के नास्तिकवाद और भ्रामक विज्ञानवाद के कारण है। इन दोनों का मूल यहूदी, ईसाई भौर इसलाम की अयुक्तिसंगत जीवन-मीमांसा ही प्रतीत होती है।

यूनान और मिश्र की प्राचीन जीवन-मीमांसा का वेद-विहित मीमांसा के साथ घना सम्बन्ध था। काल्डियन और बेबिलोनियन सभ्यताएँ भी, ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से सम्बन्धित थीं। परन्तु यहूदियों ने इन सब-मध्य एशिया और पूर्वी योरुप की-जातियों को पद-दलित कर उनके ज्ञान-विज्ञान, उनकी जीवन-मीमांसा और उनकी संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।

यहूदी जाति जिस समय अपनी विजयपताका फहरा रही थी, उस समय वह अनपढ़ एवं असभ्य थी। वह अपने पशु बल से, अपनी अपेक्षा अधिक सभ्य तथा ज्ञान-विज्ञान में अधिक उन्नत, जातियों को पराजित करते-करते उनकी सभ्यता एवं उनकी संस्कृति को भी नष्ट कर बैठी।

यूनान, मिश्र, काल्डियन, बैविलोनियन सम्यताओं का स्रोत भारतवर्ष का विज्ञान था, परन्तु अभिमान और प्रमाद के कारण इन जातियों ने अपनी सभ्यताओं तथा ज्ञान-विज्ञान के मूल स्रोतों के साथ सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया और समय पाकर इनकी संस्कृति और इनका ज्ञान रूढ़ि-मात्र रह गया। इन लोगों ने सत्य ज्ञान के मूल स्रोत अर्थात्‌ वेदादि शास्त्रों को भुला दिया। इसका परिणाम एक और तो यह हुआ कि इनकी उन्नति रुक गयी और दूसरी ओर, इनमें अपने ज्ञान-विज्ञान को दूसरों को प्रदान करने की क्षमता समाप्त हो गयी। आचार-विचार में रूढ़िवादिता आने से, दूसरों के साथ इनका व्यवहार अन्याययुकत हो गया।

उपरिलिखित तथ्य को समझने के लिए भारतवर्ष का अपना उदाहरण लिया जा सकता है। वेद आदि शास्त्रों में तथा प्राचीन स्मृतियों में भी, यह कहीं नहीं लिखा कि ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य सन्‍तान ही ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य होती है। वहाँ स्पष्ट लिखा है कि जब तक यज्ञोपवीत न मिले, तब तक बालक अथवा बालिका द्विज नहीं होते। और गुरु यज्ञोपवीत देता है बच्चे को उसकी द्विज बनने की योग्यता देखकर। वेदादि शास्त्रों में ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य के लक्षण भी लिखे हैं। स्मृतिकार ने यहाँ तक लिख दिया है कि ब्राह्मणोचित कार्यों के न करने से ब्राह्मण काठ के हरिण के समान हो जाता है अथवा कर्मानुसार ब्राह्मण की सन्‍तान शूद्र और शूद्र की सन्‍तान ब्राह्मण बन जाती है।

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Authors

Binding

Hardbound

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

1998

Pulisher

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