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Description
कविता का शुक्लपक्ष
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ सिर्फ़ इसलिए हिन्दी का एक गौरव ग्रन्थ नहीं है कि उसने पहली बार साहित्य की समग्र परम्परा का एक वयस्क और उत्तरदायी परिप्रेक्ष्य से निदर्शन कराया, बल्कि इसलिए भी कि उसमें शुक्ल जी की गहरी रसिकता, सावधान और सटीक पहचान और सजग सुरुचि से चुनी हुई कविताओं या कवितांशों का एक विलक्षण संकलन भी है।
इस संकलन से शुक्ल जी का निजी रागबोध और काव्य-दृष्टि प्रगट होती है, साथ ही हिन्दी कविता-संसार की जटिल लम्बी परिवर्तन-कथा भी शुक्ल जी के विश्लेषण और चयन से विन्यस्त होती है। महत्त्वपूर्ण आलोचक डॉ. बच्चन सिंह ने अपने सहकर्मी डॉ. अवधेश प्रधान के साथ शुक्ल जी के चयन के आधार पर हिन्दी की एक ‘गोल्डन ट्रेजरी’ एकत्र की है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यह हिन्दी काव्य की, छायावाद-पूर्व की सम्पदा से आकलित, एक रत्न-मंजूषा है। इस संकलन की एक और विशेषता की ओर भी ध्यान देना चाहिए—कविताओं में रूप का नैरन्तर्य और परिवर्तन। कुछ लोगों का विचार है कि साहित्य का इतिहास रूपों और उनके परिवर्तन का इतिहास होता है। शुक्ल जी को यह एकांगिता स्वीकार्य नहीं है। शुरू से ही रूपों के नैरन्तर्य, परिष्कार और परिवर्तन के प्रति वे सतर्क हैं। इन परिवर्तनों को वे कभी शब्द-शक्तियों के आधार पर, कभी क्रियारूपों और लय के आधार पर पहचानते हैं। इसमें केवल ‘श्रेष्ठ’ और ‘प्रिय’ का मनचाहा संकलन नहीं है, बल्कि ‘विविध’ और ‘प्रतिनिधि’ का सावधान चयन है जिसमें उत्कृष्ट काव्य-खंडों के साथ कुछ कमज़ोर काव्य-प्रयोग भी है जिनका ऐतिहासिक मूल्य है—काव्य-वस्तु और काव्य-भाषा के विकास की दृष्टि से। इसमें सफल काव्य-सृष्टि की ‘सिद्धावस्था’ के साथ असफल काव्य-प्रयत्नों की ‘साधनावस्था’ भी मौजूद है।
इस इतिहास-यात्रा में जगमगाते शिखरों के साथ कुछ गुमनाम घाटियाँ भी शामिल हैं। आप केवल ‘इतिहास’ में उद्धृत काव्य-रचनाओं को एक क्रम में देख जाएँ तो हिन्दी काव्यधारा का एक व्यापक और प्रतिनिधिमूलक गतिशील प्रवाह-चित्र सामने आ जाता है। यह संचयन ऐसी ही विविधवर्णी चित्रमाला है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2022 |
Pulisher |
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