Madhya Bharat Ki Ramayan

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Madhya Bharat Ki Ramayan

Madhya Bharat Ki Ramayan

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Author: Dr. Shrikrishna Kakde

Availability: 5 in stock

Pages: 256

Year: 2024

Binding: Hardbound

ISBN: 9789357759328

Language: Hindi

Publisher: Vani Prakashan

Description

मध्य भारत की रामायण

विराट जनचेतना के प्रतीक राम, जनमानस में हर जगह विद्यमान हैं। हज़ारों सालों से वह मानवी जीवन में नित्यनूतन रूपों में कई तरह से परिलक्षित होते रहे हैं। रामचरित्र इतना लोकोन्मुख है कि उसे कोई सीमा बाँध नहीं सकती। प्राचीन भारतीय संस्कृति में राम का दर्शन कई रूपों में जगह-जगह होता है, जिसकी परम्परा हज़ारों सालों से निरन्तर चल रही है। मध्य भारत में रामकथा का विस्तार कला, साहित्य एवं संस्कृति द्वारा विभिन्न रूपों में हुआ है। यहाँ के जनमानस ने राम को अपनी संस्कृति के अनुरूप ढाल लिया है। यहाँ राम से सम्बन्धित अनगिनत स्थल, पर्वत, शिला, कुंड, मूर्तियाँ, भित्तिचित्र एवं स्थापत्य दिखाई देते हैं। जहाँ हर वक़्त श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है। लोग बड़े प्रेमभाव से यहाँ आकर रामनाम का गुणगान करते हैं, उनके सामने नतमस्तक होते हैं। एलोरा, एलिफेंटा, हम्पी आदि प्राचीन गुफाओं की मूर्तियाँ तथा दतिया, ओरछा के मन्दिरों में स्थित रामायण के परिदृश्य अद्भुत एवं अतुलनीय हैं। मध्य भारत में लगभग पाँचवीं शताब्दी के आगे रामायण से सम्बन्धित मूर्तियाँ (शिल्प) दिखाई देती हैं। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है, एलोरा का कैलाश मन्दिर । जहाँ एक ही चट्टान पर रामकथा के प्रसंग शिल्पित किये गये हैं। ऐसे ही कुछ मूर्तियाँ विष्णु मन्दिर जांजगीर, मार्कंडा मन्दिर समूहों में उत्कीर्ण हैं। विजयनगर साम्राज्य में मध्यकाल के दौरान कई जगह राम मन्दिर तथा शिल्पों का निर्माण हुआ है जिसमें हम्पी जैसे स्थल प्रमुख हैं। ऐसी मूर्तिकला की विरासत हमारे देश में बिखरी पड़ी है।

रामायण से सम्बन्धित भित्तिचित्र भी हमारी संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। मध्य भारत के विभिन्न मन्दिरों, प्रासादों, हवेलियों, आवास-स्थानों, समाधि एवं छतरियों पर रामायण विषयक भित्तिचित्रों की समृद्ध परम्परा लगभग तीन सौ सालों से विद्यमान है। रामायण चित्रों का सृजनबोध समान नहीं है, उसमें काफ़ी सारी भिन्नताएँ हैं। मुग़ल तथा मध्ययुगीन काल में विकसित दख्खन, राजपूत, मालवी, मांडू, बुन्देली, निमाड़ी, मराठा, तंजावुरी शैली में निर्मित रामायण विषयक भित्तिचित्र हमारी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण आरेखन है। ग्वालियर, दतिया, ओरछा, इन्दौर, उज्जैन, बुरहानपुर, नागपुर, नासिक एवं येवला में बने भित्तिचित्र इसके बेहतरीन नमूने हैं। हालाँकि उस पर प्रादेशिक संस्कृति का गहरा असर दिखाई देता है। भित्तिचित्रों की परिधि में तो सभी अंकन आते हैं, जो भित्तियों पर अंकित किये गये हों। जिसमें मांडने, पिठौरा आदि प्रकार होते हैं। किन्तु सबका विवरण यहाँ नहीं दिया गया है। सिर्फ़ दीवारों पर अंकित चित्रों के बारे में समुचित विचार किया गया है। यही बात रामायण मूर्तिशिल्पों के बारे में कहनी होगी। यहाँ केवल पाषाणों से बनी मूर्तियों का विचार किया गया है। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रामायण विषयक मूर्तिशिल्प एवं भित्तिचित्रों का स्थानवार सर्वेक्षण करते हुए विवरण प्रस्तुत किया गया है।

– पुस्तक की भूमिका से

 

भारतीय उपमहाद्वीप में रामायण से सम्बन्धित कई पुरातन मूर्तियाँ, शिल्प, मन्दिर और गुफाओं में साझा विरासत बिखरी पड़ी है। जिसमें हम्पी, एलोरा, एलिफेंटा आदि गुफाओं तथा देवगढ़, नचना, मार्कंडा जैसे मन्दिरों में बनी प्रतिमाएँ अद्भुत एवं अतुलनीय हैं। लगभग गुप्तकाल से चली आ रही यह सुनहरी परम्परा रामायण की वैश्विक पारिभाषिकता दर्शाती है। कलाओं का आयाम माने जानेवाले भित्तिचित्रों की बात करें तो राजस्थानी, पहाड़ी, मिथिला, तंजावुर और मराठा शैली में बने भित्तिचित्र हमारी संस्कृति की अनमोल धरोहर हैं। इन चित्रों में परिलक्षित रामायण के प्रसंग अनोखे एवं आकर्षक हैं जिनको तत्कालीन संस्कृति का परिचायक भी माना जाता है। यह पुस्तक मध्य भारत की रामायण मूर्तिकला (शिल्प) एवं भित्तिचित्रों को अनोखे ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास करती है।

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Hardbound

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Hindi

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Publishing Year

2024

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