Prabandhan Mahaguru Shri Hanumanje Maharaj

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Prabandhan Mahaguru Shri Hanumanje Maharaj

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200.00 195.00

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200.00 195.00

Author: Sunil Gombar

Availability: 5 in stock

Pages: 252

Year: 2023

Binding: Paperback

ISBN: 9788190304368

Language: Sanskrit & Hindi

Publisher: J. B. CHARITABLE TRUST

Description

प्रबन्धन महागुरु श्री हनुमानजी महाराज

आत्मनिवेदन

हनुमतचरित ऐसी सर्वकालिक संजीवनी औषधि है कि जिसका प्रमाण देश-विदेश तक विस्तारित आपके अनेकानेक पूजा-स्थलों की अनवरत श्रृंखला से प्रत्यक्ष है। जहाँ तक इस “संकट हरन” औषधि के प्रभाव की बात है तो तुलसी जी ‘चमत्कारी चालीसा’ में सूक्ष्म कामना से अंततः यह उल्लेख कर गये हैं ..

पवन तनय संकट हरन मंगल मूरत रूप।

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप।।

संपूर्ण कल्याण का ही प्रतिरूप-पर्याय हैं – हनुमान जी महाराज का ‘मंगल मूरत रूप’। हनुमत्‌ औषधि का नित्य निरंतर सेवन सर्वफलप्रदाता ही है। ऐसा संभव हो सकता है जब ‘हृदय बसहु’’ की सूक्ष्म शब्दावली को हम ग्राह्य कर सकें। संकट, पीड़ा, दुख आदि सभी नकारात्मक अनुभूतियाँ हनुमानजी की चरण-शरण में, अर्थात्‌ हनुमतचरित को हृदय में आत्मसात्‌ कर लेने मात्र से स्वतः ही विलुप्च हो जाती हैं।

ऐसी आत्मशक्ति, ऐसी सत्प्रेरणा प्रदान करती है, हनुमतचरित से ग्राह्म शक्ति कि जिससे जीवन मूल्यों और जीवन उद्देश्य के वास्तविक अर्थ ग्रहण कर प्रत्येक अपने जीवन को ‘सत्यं शिवम्‌ सुंदरम’ का ही प्रतिरूप बना सकता है।

आत्मिक आनंद से भरी ऐसी परिपूर्णता, कि जिसका आह्लाद अनुभूत ही किया जा सकता है, शब्दों में इसे व्यक्त करना कदाचित्‌ संभव नहीं है। कर्मों में इसकी सकारात्मक संचेतना अवश्य दृष्टिगोचर होती दिखती है।

ग्रन्थों में हनुमत्‌ उपासना से संबंधित अनेकानेक विधियों और पद्धतियों के उल्लेख प्राप्त होते हैं। साधक इन्हें सिद्ध कर लाभान्वित भी होते आये हैं। हनुमत्‌ पूजा-उपासना से लोकोपकार तत्काल सिद्ध होते पाये गये हैं।

“रामकथा” की कीर्ति अजर-अमर ही है। सभी भाषाओं, सभी कालों में इसका गुणगान निरंतर होता आया है भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व को संस्कार सूत्र प्रदान करने वाली रामकथा, स्वतः ही संपूर्ण प्रेरणा है।

“मानस” से तुलसी जी ने इसे “सर्वजनहिताय” ही बना दिया है। वर्तमान में जब ‘प्रबंधन’ की चर्चा प्रत्येक क्षेत्र में सर्वाधिक और सर्वग्राह्म रूप में की जाती हो, वहाँ प्रबंधन के मूल आचार्य, हमारे इष्ट हनुमानजी महाराज तो सर्वेत्कृष्ट प्रेरणा-पुंज ही हैं।

परिकल्पनाओं को प्रयोगों, अनुभवों से मूर्त रूप प्रदान करना जहाँ विज्ञान है, वहीं विशिष्ट लक्ष्य हेतु योजना, संगठन, नेतृत्व और प्रेरणा के साथ क्रियात्मक नियंत्रण से कर्मशीलता की अवधारणा ही है – प्रबंधन। हनुमानजी तो प्रभु-सत्ता की ही प्रबंधन शक्ति हैं। हनुमानजी तो अपने अलौकिक यद्यपि सहज स्वाभाविक सेवा और कर्म से भक्ति की पराकाष्ठा ही हैं।

हनुमतचरित में सूक्ष्म प्रवेश से, इस “ज्ञान गुण सागर” से ऐसे बहुमूल्य जीवन-सूत्र रूपी मोती प्राप्त होते हैं कि आत्पप्रबंध और जीवन प्रबंधन का आलोकित प्रकाश मार्ग प्रशस्त होता दिखता है।

इसी अवधारणा, इसी हनुमत् प्रेरणा को मूर्त रूप देने का हमारा यह लघु प्रयास रहा है। हमारा दृढ़ विश्वास ही है कि अनुकंपा और सत्पेरणा परमसत्ता के कृपा प्रसाद की ही अलौकिक अनुभूति होती है। प्रभुसत्ता की कथायें अलौकिक होती हैं, किंतु निहित गूढ़ार्थ रूपी संदेश लिये कि उनसे सूक्ष्म तत्व ग्रहण कर मानव मात्र अपने स्वयं का और जीवन का सुप्रबंधन कर सके।

अपने इस प्रयास प्रबंधन में हमने कथा रस और भक्ति रस की प्रमुखता का समावेश करते हनुमतचरित्र के सूक्ष्म तत्त्व संदेशों को उन्हीं से प्राप्त सत्पेरणा रूपी अनुकंपा से ग्रहण कर भक्त पाठकों की ‘सर्वहिताय’ औषधि हेतु विवेचना प्रस्तुत की है। ‘मानस’ को मूल आधार हेतु नमन करते हमने अपना प्रयास-पथ विनिर्मित किया है।

चहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊ – की तुलसी जी की ‘मानस’ और उसमें वर्णित हनुमतचरित अलौकिक यद्यपि सहज ग्राह्म ही है।

राम कथा सुंदर कर-तारी। संसय विहग उड़ावन हारी।।

में ‘सुंदर कर-तारी’ की भक्त मूर्ति ही हैं हनुमानजी, जो निरंतर अपने प्रभु के नाम स्मरण में ही निमग्न रहते हैं। यही उन्हें सहज और स्वाभाविक रूप में सर्व शिरोमणि बनाता है। कर्म, भक्ति और सेवा के परमपद पर आसीन करता है। कारण कि उनके हृदय में ‘राम लखन सीता मन बसिया’ का एकमात्र निवास है।

वहीं तुलसी जी मानव मात्र के लिए यही सूक्ष्म कामना कर गये हैं कि हमारे हृदय में ‘राम लखन सीता’ सहित कर्म, सेवा और समर्पण का सिंदूरी प्रकाश-पुंज हनुमत्‌ स्वरूप में, उनकी मूल सत्प्रेरणा के रूप में सर्वदा विद्यमान रहे।

प्रबंधन के मूलभूत सूत्रों और उनसे उद्‌भूत सत्कर्मों का संपूर्णतम समुच्चय ही हैं हनुमान जी।

पुनः-पुनः अपने आराध्य श्री हनुमानजी के चरणों में नमन करते हम भक्त पाठकों की सेवा में ‘प्रबंधन महागुरु’ हनुमानजी के आशीर्वाद की सर्वाकांक्षा लिये इस सेवा ग्रंथ को अर्पित करते हैं।

भक्ति के भावावेश में त्रुटि सदैव क्षमा योग्य होती है। अतः कैसी भी त्रुटि हो, हनुमानजी महाराज क्षमा करेंगे, ‘प्रबंधन’ के इन सूत्रों से पाठक प्रेरणा ग्रहण कर सकें, यही हमारी हनुमत्‌ सेवा का उद्देश्य है, और सर्वदा ही रहेगा। आपसे प्राप्त प्रतिक्रियायें हमारा मनोबल ही निर्मित करेंगी।

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Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Sanskrit & Hindi

Pages

Publishing Year

2023

Pulisher

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