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रामविलास शर्मा
रामविलास शर्मा (1912-2000) हिन्दी आलोचना, विशेषतौर से मार्क्सवादी हिन्दी आलोचना के प्रमुख स्तम्भों में एक हैं। उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता असंदिग्ध रही है। एक आलोचक और सिद्धान्तकार के रूप में उनका साहित्य विपुल है। सौ से अधिक पुस्तकों का लेखन-सम्पादन करने वाले रामविलास शर्मा की आलोचना के दो पक्ष स्वीकार किये गये हैं – खण्डन पक्ष और स्थापित करने वाला पक्ष। खण्डन वे मूलतः उन्हीं पक्षों का करते हैं, जो रूढ़ और प्रगतिविरोधी थे। इस खण्डनात्मक शैली में उन्होंने हिन्दी आलोचना की परम्परावादी जड़ता को तोड़ा। ऐसा करके वे अपने कार्य की सिद्धि नहीं मान लेते। वे विभिन्न सन्दर्भों में, ज्ञानानुशासनों में अध्ययन-विवेचन के वैज्ञानिक बोध और प्रगतिशील दृष्टि को प्रस्तावित करते हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक रामविलास शर्मा के साहित्य के विभिन्न पक्षों; अलग-अलग समयों में सृजन के विकास, विस्तार और बदलावों का न सिर्फ परिचय देती है, अपितु उनका अन्तर्दृष्टि सम्पन्न तरीके से विवेचन भी करती चलती है। प्रस्तुत पुस्तक के लेखक अजय वर्मा ने इसमें सिर्फ रामविलास शर्मा की साहित्यिक आलोचना को ही सन्दर्भित नहीं किया है, अपितु उनके भाषा- चिन्तन, नवजागरण और इतिहास सम्बन्धी अध्ययन पर भी निगाह डाली है।
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2021 |
Pulisher |
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