Suryabala : Sakshatkar Ke Aaine Me
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सूर्यबाला : साक्षात्कार के आईने में
महिला रचनाकारों ने अपनी पीड़ा को अपनी कलम से, अपनी भाषा में अपने कागज पर उतारना आरंभ ही किया था कि आरोपों की बौछार होने लगी। घर की चारदीवारी में ही रहती हैं तो अनुभव की व्यापकता और गहराई कहाँ से आयेगी ? पहले अपने सामाजिक बंधन तोड़ पायेगी तभी रचना अपनायेगी। जब स्त्री है तो दोयम दर्जे की नागरिक ही है। साहित्य में सास-बहू की ‘आंसू मार्का, कहानियों को पहले ही रद्द किया जा चुका है। पहले मुक्ति की अवधारणा तो स्पष्ट हो जाये।’
सूर्यबाला से ये और रचना यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर अन्य कई प्रश्नों के उत्तर मांगे गये। उन्होंने संयम से परन्तु खुलेपन से अपवादों की धूल झाड़कर निर्भीक ढंग से सभी प्रश्नों के उत्तर व्यापक अध्ययन के आधार पर, गहरे अनुभव से पस्त बहुत सहजता से दिये। अनुभव को केवल विस्तार और दैविध्य से न जानकर गहराई से जाना। स्त्री जीवन की स्त्री सार्थकता की कसौटी वर्जनाहीन जीवन और लेखन में खुलेपन से स्वीकार नहीं की। फतवों को दरकिनार कर अपने विवेक से निर्णय लेना मुनासिब समझा। गंभीर सरोकारों पर ध्यान दिया। यही कारण है कि उनके लेखन में द्वंद के बावजूद संतुलन बना रहा और समरसता का स्वर प्रमुख रहा है।
स्त्री को सर्वतोमुखी विकास की धुरी माना। उनके अनुसार स्त्री की स्वतंत्र चेता शक्ति पुरुष के व्यक्तित्व को भी समृद्ध करती है।
कहानी, व्यंग्य, उपन्यास तीन-तीन पाठकीय दिलचस्पी की विधाओं को साधे रखना, बचकर निकलने का कोई बहाना न खोजना, ललकारती चुनौतियों का सामना करना, निराशा के दौर में भी एक-एक आशा की किरण संजोना सूर्यबाला का ही काम है।
– तरसेम गुजराल
Additional information
Authors | |
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Binding | Hardbound |
ISBN | |
Language | Hindi |
Pages | |
Publishing Year | 2017 |
Pulisher |
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