Yashpal : Mulayankan Aur Mulayankan

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Yashpal : Mulayankan Aur Mulayankan

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350.00 270.00

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350.00 270.00

Author: Madhuresh

Availability: 5 in stock

Pages: 408

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9789387187597

Language: Hindi

Publisher: Nayeekitab Prakashan

Description

यशपाल: मूल्यांकन और मूल्यांकन

सामाजिक यथार्थ के प्रति गहरा लगाव, मानववादी दृष्टि और वर्णनात्मक शिल्प उन्हें प्रेमचन्द से जोड़ता है। हम अनुभव करते थे कि यशपाल ने प्रेमचन्द के समान ही सामाजिक जीवन यथार्थ की अपनी कहानियों का विषय बनाया, कौतूहल तथा जिज्ञासा उत्पन्न करने वाली, वेग के साथ बहा ले चलने वाली कथावस्तु की रचना की और अन्त के बिन्दु पर कहानी के मर्म का उद्घाटन किया। अर्थात् यशपाल के भीतर अन्त पहले उभरता है। वह हमेशा अनुभूति प्रेरित नहीं होता, वह प्रायः एक विचार होता है। उनके मन में सामाजिक विसंगति का कोई बिन्दु उठता है और उसी बिन्दु को दीप्त करने के लिये वे कथा गढ़ लेते हैं। निश्चय ही वह विसंगति समकालीन जीवन के आचरण से उत्पन्न होती है किन्तु वह सदैव लेखक को अनुभव से ही प्राप्त नहीं होती, बल्कि मार्क्सवादी अवधारणा के रूप में भी मिलती है। यशपाल की कहानियाँ अन्त में एक तेज हिट तो देती हैं किन्तु वे अपने बीच में हमें रमाने के स्थान पर बहाती हैं। पाठक को हमेशा लगता है कि अब कोई रहस्य खुलने वाला है और वह उसी खुलने वाले रहस्य की ओर आँख उठाये हुए कथा का सूत्र पकड़े चलता रहता है। लेकिन यशपाल प्रेमचन्द की परम्परा से अन्त के बिन्दु पर जुड़कर भी उसी बिन्दु पर अपने को अलगा लेते हैं। यशपाल का अन्तिम बिन्दु आदर्श बिन्दु नहीं होता, वह तीखा व्यंग्य होता है। यह यथार्थ के साथ किसी आदर्श को चिपकाने के स्थान पर एक विसंगति के समूचे रूप को बड़ी तेजी के साथ उद्घाटित कर देते हैं। वह बिन्दु सरल भावात्मक न होकर व्यंग्यात्मक होता है, जिसमें कसक और उपहास, बेबसी और आक्रोश, व्यथा और अस्वीकृति का मिला–जुला अहसास होता है।

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Paperback

Language

Hindi

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Publishing Year

2019

Pulisher

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