Gau Ka Gaurav

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Gau Ka Gaurav

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200.00 180.00

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Author: Tejpal Singh Dhama

Availability: 5 in stock

Pages: 232

Year: 2019

Binding: Paperback

ISBN: 9788188388318

Language: Hindi

Publisher: Hindi Sahitya Sadan

Description

गौ का गौरव

कृषि प्रधान देश भारत में आज भी अधिकांश खेती बैलों द्वारा ही की जाती है, इसलिए बैलों को कर्म व कर्त्तव्य का प्रथम गुरु माना जा सकता है। आर्यावर्त सदा से शाकाहारी राष्ट्र रहा है। और सम्पूर्ण शाकाहार खाद्यान्न बैलों के पुरुषार्थ से ही उत्पन्न होता रहा है, इसलिए बैलों को पालक होने के कारण पिता भी कहा गया है। गाय एक तरफ जहाँ इन पुरुषार्थी बैलों को जन्म देती है, दूसरी तरफ वह स्वयं भी दूध व दही द्वारा मानव का पोषण करती है। आयुर्वेद में गाय से प्राप्त पंचगव्य तथा गोरोचन के कोटिश: उपयोग निर्दिष्ट हैं। जन्म देने वाली माता तो कुछ ही महीने बच्चे को दूध पिलाती है, फिर भी कहते हैं, कि मां के दूध का कर्ज कभी अदा नहीं किया जा सकता, लेकिन गाय तो जीवन भर दूध पिलाती है, गोषडंग से स्वास्थ्य प्रदान करती है, इसलिए इसको विश्व की माता कहा गया है।

परोपकारिणी होने के कारण श्रद्धा व भक्ति की यह देवी द्वार की शोभा व घर का गौरव मानी जाती है, तभी तो सन् 1857 ईस्वी में सैनिकों ने गाय की चर्बीयुक्त कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया था और यहीं से शुरू हुई आजादी प्राप्त करने की जंग। इसके बाद कूका विद्रोह सहित सारा स्वतंत्रता आंदोलन गाय से प्रेरित रहा है। इस कारण गाय को भारत की आजादी की जननी कहा जाता है। इन्हीं की संतानों के पुरुषार्थ से मनुष्य सदा अर्थ संपन्न होता आया है। आर्थिक उन्नति से ही मनुष्य सुख-सुविधा पाता है और सुख-सुविधा से जीवन यापन करने को ही स्वर्ग कहा गया है। यदि जीवन के बाद के स्वर्ग की कल्पना को भी सत्य माने तो वह भी गाय के बिना संभव नहीं, क्योंकि स्वर्ग प्रदान करने वाले धर्मग्रंथ चाहे वेद हों या गीता, उनका आदि ज्ञान गाय की छत्र-छाया में ही प्राप्त हुआ है। आर्यों के यहां कोई भी धार्मिक कर्मकांड बिना यज्ञ के किया जाना संभव नहीं और यज्ञ कभी गौघृत और दधि के बिना संपन्न नहीं होते, इसलिए धर्मशास्त्र का पहला अध्याय व स्वर्ग की पहली सीढ़ी गाय ही है।

गोग्रास-दान का अनन्त फल

योऽग्रं भक्तं किंचिदप्राश्य दद्याद् गोभ्यो नित्यं गोव्रती सत्यवादी।

शान्तोऽलुब्धो गोसहस्रस्य पुण्यं संवत्सरेणाप्नुयात् सत्यशील:।।

यदेकभक्तमश्नीयाद् दद्यादेकं गवां च यत्।

दर्शवर्षाण्यनन्तानि गोव्रती गोऽनुकम्पक:।।

(महाभारत, अनुशा.73। 30-31)

जो गोसेवा का व्रत लेकर प्रतिदिन भोजन से पहले गौओं को गोग्रास अर्पण करता है तथा शान्त एवं निर्लोभ होकर सदा सत्य का पालन करता रहता है, वह सत्यशील पुरुष प्रतिवर्ष एक सहस्र गोदान करने के पुण्य का भागी होता है। जो गोसेवा का व्रत लेने वाला पुरुष गौओं पर दया करता और प्रतिदिन एक समय भोजन करके एक समय का अपना भोजन गौओं को दे देता है, इस प्रकार दस वर्षों तक गोसेवा में तत्पर रहने वाले पुरुष को अनन्त सुख प्राप्त होते हैं।

आवाहन

आवाहयाम्यहं देवीं गां त्वां गैलोक्यमातरम्।

यस्या: स्मरणमात्रेण र्स्वपापप्रणाशनम्।।

त्वं देवी त्वं जगन्माता त्वमेवासि वसुन्धरा।

गायत्री त्वं च सावित्री गंगा त्वं च सरस्वती।।

आगच्छ देवि कल्याणि शुभां पूजां गृहाण च।

वत्सेन सहितां त्वाहं देवीमावाहयाम्यहम्।।

भावार्थ: जिस गोमाता के मात्र स्मरण करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है, ऐसी तीनों लोकों की माता हे गो देवी ! मैं तुम्हारा आवाहन करता हूं। हे देवी तुम संसार की माता हो, तुम्हीं वसुन्धरा, गायत्री, सावित्री (गीता), गंगा और सरस्वती हो। हे कल्याणमयी देवी ! तुम आकर मेरी शुभ पूजा (सेवा) को ग्रहण करो। हे भारत माँ का गौरव बढ़ाने वाली बछड़े सहित देवस्वरूपा तुम्हारा मैं आवाहन करता हूँ।

 

भूमिका

कृषि प्रधान देश भारत में आज भी अधिकांश खेती बैलों द्वारा ही की जाती है, इसलिए बैलों को कर्म व कर्त्तव्य का प्रथम गुरु माना जा सकता है। आर्यावर्त सदा से शाकाहारी राष्ट्र रहा है। और सम्पूर्ण शाकाहार खाद्यान्न बैलों के पुरुषार्थ से ही उत्पन्न होता रहा है, इसलिए बैलों को पालक होने के कारण पिता भी कहा गया है। गाय एक तरफ जहाँ इन पुरुषार्थी बैलों को जन्म देती है, दूसरी तरफ वह स्वयं भी दूध व दही द्वारा मानव का पोषण करती है। आयुर्वेद में गाय से प्राप्त पंचगव्य तथा गोरोचन के कोटिश: उपयोग निर्दिष्ट हैं। जन्म देने वाली माता तो कुछ ही महीने बच्चे को दूध पिलाती है, फिर भी कहते हैं, कि मां के दूध का कर्ज कभी अदा नहीं किया जा सकता, लेकिन गाय तो जीवन भर दूध पिलाती है, गोषडंग से स्वास्थ्य प्रदान करती है, इसलिए इसको विश्व की माता कहा गया है। परोपकारिणी होने के कारण श्रद्धा व भक्ति की यह देवी द्वार की शोभा व घर का गौरव मानी जाती है, गाय के प्रति हमारा रिश्ता इतना अगाध रहा है कि सन् 1857 ईस्वी में सैनिकों ने गाय की चर्बी से युक्त कारतूस के प्रयोग से मना कर दिया था और यहीं से शुरू हुई आजादी प्राप्त करने की जंग। इसके बाद कूका विद्रोह सहित सारा स्वतंत्रता आंदोलन गाय से प्रेरित रहा है। इस कारण गाय को भारत की आजादी की जननी कहा जाता है। इन्हीं की संतानों के पुरुषार्थ से मनुष्य सदा अर्थ संपन्न होता आया है। आर्थिक उन्नति से ही मनुष्य सुख-सुविधा पाता है और सुख-सुविधा से जीवन यापन करने को ही स्वर्ग कहा गया है। यदि जीवन के बाद के स्वर्ग की कल्पना को भी सत्य माने तो वह भी गाय के बिना संभव नहीं, क्योंकि स्वर्ग प्रदान करने वाले धर्मग्रंथ चाहे वेद हों या गीता, उनका आदि ज्ञान गाय की छत्र-छाया में ही प्राप्त हुआ है। आर्यों के यहां कोई भी धार्मिक कर्मकांड बिना यज्ञ के किया जाना संभव नहीं और यज्ञ कभी गौघृत और दधि के बिना संपन्न नहीं होते, इसलिए धर्मशास्त्र का पहला अध्याय व स्वर्ग की पहली सीढ़ी गाय ही है।

गौ का गौरव इतना महान होते हुए भी हम लोग समझ नहीं पा रहे हैं और खेद की बात है कि भारत वर्ष में गोवंश पर आज भी अत्याचार हो रहा है। सरकारी सहायता से पशु-वधशालाएँ चलायी जा रही हैं, जो सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए शर्म की बात है। पता नहीं मेरी इस भारत माता के माथे से गोहत्या का कलंक कब मिटेगा।

 – डी.गायत्री आर्य 

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Binding

Paperback

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Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2019

Pulisher

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