Mahamritunjay Sadhana Evam Upasana

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Mahamritunjay Sadhana Evam Upasana

Mahamritunjay Sadhana Evam Upasana

100.00 99.00

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Author: C.M. Srivastava

Availability: 5 in stock

Pages: 146

Year: 2020

Binding: Paperback

ISBN: 9788181331038

Language: Hindi

Publisher: Manoj Publications

Description

महामृत्युंजय साधना एवं उपासना

भूमिका

भारतवर्ष के प्राचीनतम देवता माने जा सकते हैं शिव, क्योंकि इनकी साधना, आराधना एवं उपासना के प्रमाण वैदिक काल से भी पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में प्राप्त होते हैं। वैदिक काल में शिव का रुद्र रूप अधिक प्रसिद्ध रहा। उपनिषदों में रुद्र के अनेक नामों का प्रयोग किया गया है जैसे-शिव, महादेव, महेश्वर और ईशान आदि। ‘अथर्ववेद’ में भव, शर्व, पशुपति, उग्र और ‘शतपथ ब्राह्मण’ में अशनि नाम का भी प्रयोग हुआ है। पाणिनी ने ‘मूढ़’ नाम का भी उल्लेख अपने सूत्रों में किया है (अष्टा० 4/1/49)।

महाभारत में शिव के सहस्रनामों का उल्लेख हुआ है, जिनमें से कुछ नवीन हैं-शंकर, नीलकंठ, त्रयम्बक, धूर्जटि, नंदीश्वर, शिखिन्‌, व्योमकेश, क्षितिकण्ठ आदि। इन विविध नामों से शिव की रक्षकता और संहारकता, सौम्यता और अघोरता, दयालुता और कठोरता आदि विरोधी या विपरीत व्यक्तित्व के सामंजस्य की सूचना मिलती है। वे भोगी व यति, राजा और रंक, सभ्य एवं नागरिक तथा असभ्य व वन्य-दोनों ही प्रकार के उपासकों के आराध्य हैं। वे रावण के भी पूज्य हैं और राम के भी।

सत्‌-असत्‌, हर्ष-विषाद, जन्म-मृत्यु, सुख-दुःख, आकेर्षण-विकर्षण अनुराग-विराग, सुंदर-असुंदर, मंगल-अमंगल तथा आत्म-अनात्म का सम्मिश्रण ही विराट शक्ति, लोकपति एवं परमशिव का स्वरूप है। शिव आशुतोष हैं जो तनिक उपासना से ही प्रसन्न हो जाते हैं। शिव का चरित्र परम त्यागी, परोपकारी दीनवत्सला, तपस्या और सर्वमंगलकारी गुणों से युक्त है। जहां अन्य देवताओं को वैभव संपन्नावस्था में प्रदर्शित किया गया है, वहीं शिव को सर्वत्यागी, संतोषी आत्मालीन तथा श्मशानवासी चित्रित किया गया है। वे महाकाल होकर भी लोक कल्याणकारी शिव हैं। समुद्र-मंथन से प्राप्त उत्तम-उत्तम वस्तु अन्य देवों ने ग्रहण कीं, किन्तु शिव ने सर्वविनाशक कालकूट विष का पान करके सृष्टि की रक्षा की; इसलिए वे महादेव बन गए। अन्य देवता जहां सुवर्ण-रत्नों के आभूषण और रेशमी वस्त्र धारण करते हैं, वहीं शिव रुद्राक्ष एवं बाघम्बर से ही स्वयं को विभूषित करते हैं। दूसरे देवता पकवान, मिष्ठान्न तथा नाना प्रकार के व्यंजनों को ग्रहण करते हैं, किन्तु शिव बेलपत्र और धतूरा जैसी साधारण पूजा-सामग्री से ही संतुष्ट हो जाते हैं। इसी आदर्श चरित्र के कारण ही शिव देव-दानव दोनों की भक्ति और उपासना के आधार होकर सर्वोच्चासन के अधिकारी हैं।

अपने भक्तों पर वे शीघ्र प्रसन्‍न हो जाते हैं तथा उन्हें काल के गाल में जाने से बचाते हैं। मृत्यु को जीतने वाले हैं, इसलिए मृत्युंजय हैं। कलियुग में केवल मृत्युंजय शिव की उपासना ही फल देने वाली है। सर्व प्रकार के पापों के दुःखं-शोक आदि को हरने के लिए एवं सर्व प्रकार के रोग नाश के लिए शिवजी का पूजन और महामृत्युंजय का जप ही श्रेष्ठ है। गृह-पीड़ा, राज्य-दंड, महामारी, दैविक-दैहिक-भौतिक ताप, वैधव्य दोष, अल्पायु एवं अकालमृत्यु, घातक रोग, शोक और कलह आदि के निवारण के लिए श्री महामृत्युंजय की साधना सर्वोत्तम है। जो लोग प्रतिदिन केवल शिव का स्तुतिगान ही करते हैं, वे भी भगवान महामृत्युंजय की कृपा पाने में सहज ही सफल हो जाते हैं। हमारा विश्वास है, यह पुस्तक सभी का कल्याण करने में समर्थ होगी।

– सी.एम. श्रीवास्तव

 

अनुक्रम

       शिव से शिक्षा

       शिव-शक्ति रहस्य

       उपासना का महत्त्व

       शिव पूजन विधान

       महामृत्युंजय प्रयोग के लाभ

       दीर्घायु के लिए

       श्रीमृत्युंजय स्तोत्रम्‌

       मृत्युंजय साधना का प्रथम सोपान

       महामृत्युंजय साधना और शिव

       महामृत्युंजय मंत्रों का स्वरूप

       जीवन-रक्षक महामृत्युंजय विधि

       मृत्युंजय मंत्र का प्रयोगात्मक रूप

       मृत्यु पर विजय

       मृतसंजीवनी यंत्र और मंत्र

       श्रीमहामृत्युंजय शरणागति

Additional information

Authors

Binding

Paperback

ISBN

Language

Hindi

Pages

Publishing Year

2020

Pulisher

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